पराली न जलाने के लिए शुरू की गई जागरूक मुहिम में शामिल होने का न्योता दिया
डेली संवाद, चंडीगढ़
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने सोमवार को पंजाब के प्रगतिशील किसानों के साथ मुलाकात की जिन्होंने धान की पराली न जला कर वातावरण की सुरक्षा के लिए बदलाव का आधार बांधा है। मुख्यमंत्री ने इन किसानों को राज्य सरकार द्वारा पराली न जलाने के लिए शुरू की गई जागरूक मुहिम में शामिल होने का न्योता दिया जिससे हमारी आने वाली पीढिय़ों को साफ़ सुथरा वातावरण दिया जा सके।
कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने किसानों के ग्रुप के साथ बातचीत करते हुए कहा कि वह (किसान) इस बदलाव के अग्रणी बन कर मानवता की बहुत बड़ी सेवा कर रहे हैं जिनकी यह नवीन पहल प्रदूषण मुक्त वातावरण सृजन करने में अहम रोल निभाएगी। उन्होंने कहा कि धरती की उपजाऊ शक्ति को बचाने और प्राकृतिक साधनों के संरक्षण के लिए प्रगतिशील किसानों के तजुर्बे और महारत को अन्य किसानों को भी इस्तेमाल करना चाहिए।
भूजल जो दिन प्रति दिन नीचे जा रहा है, को संभालने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह किसान भाईचारे की जि़म्मेदारी बनती है कि आने वाली पीढिय़ों के लिए पानी बचा कर रखा जाये नहीं तो हमारा राज्य आने वाले समय में रेगिस्तान बन जायेगा जिससे कृषि अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी। उन्होंने फ़सलीय विभिन्नता के साथ बूंद प्रणाली पर ज़ोर देते हुए कहा कि पानी की समस्या से बचने का यह एकमात्र उपाय है।
पराली न जलाने के लिए बड़े स्तर पर मुहिम चला रहे हैं
मुख्यमंत्री ने ऐसे किसानों की कोशिशों को विशेष तौर पर सराहा जिन्होंने उच्च शिक्षा और इंजीनियरिंग करने के बाद कृषि को मुख्य पेशे के तौर पर अपनाया। मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी देन और कृषि करते हुए नयी आधुनिक तकनीकों का प्रयोग अन्य किसानों को भी नयी तकनीकों का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करेगी जिससे उत्पादन में मात्रात्मक और गुणात्मक विस्तार होगा।
मुख्यमंत्री ने कृषि विभाग की उन कोशिशों की प्रशंसा की जिसमें वह किसानों को पराली न जलाने के लिए बड़े स्तर पर मुहिम चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन कोशिशों स्वरूप पिछले साल पराली जलाने के मामलों में १० प्रतिशत गिरावट आई थी और इस साल इसके और भी अच्छे नतीजे आऐंगे।
फतेहगढ़ साहिब के गाँव साधूगढ़ के किसान सुरजीत सिंह ने अपना तजुर्बा साझा करते हुए बताया कि उसने फसलों के अवशेष को खुले खेतों में आग लगाने का अमल उस समय त्याग दिया था जब मौजूदा आधुनिक खेती मशीनरी और यंत्रों का रुझान प्रचलित नहीं था । उन्होंने किसानों को बड़े स्तर पर जागरूक करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया जिससे उनको पराली जलाने के दुष्प्रभावों संबंधी अधिक से अधिक अवगत करवाया जा सके क्योंकि इससे न सिफऱ् ज़मीन की उत्पादक शक्ति पर प्रभाव पड़ता है बल्कि प्रदूषण होने से मानवीय सेहत को भी नुक्सान पहुँचता है।
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