डेली संवाद, चंडीगढ़। New Criminal Laws: भारतीय कानूनी प्रणाली को औपनिवेशिक प्रभाव से मुक्त करने की दिशा में एक नए कदम के रूप में देश में तीन नए आपराधिक कानून लागू कर दिए गए है। केंद्र सरकार (Modi Government) ने कहा है कि नए कानून भारतीय कानूनी प्रणाली को बेहतर बनायेंगे साथ ही सरकार ने कहा कि नए कानून औपनिवेशिक प्रभाव से मुक्त होंगे और भारतीय कानूनी प्रणाली को आधुनिक बनायेंगे।
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हाल ही में लागू किए गए तीन आपराधिक कानूनों के सकारात्मक पहलुओं को प्रकाशित किया गया। इसमें 3 साल के भीतर न्याय देने के लिए समय सीमा निर्धारित करना शामिल है, जिसके लिए 35 धाराओं में समयसीमा जोड़ी गई है, अगर इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से शिकायत की जाती है तो 3 दिनों के भीतर एफआईआर दर्ज करना होगा।
ई-एफआईआर और चार्जशीट डिजिटल
इसमें घोषित अपराधियों के खिलाफ 90 दिनों के भीतर अनुपस्थिति में मुकदमा चलाना और आपराधिक मामलों में फैसला सुनवाई समाप्त होने के 45 दिनों के भीतर देना होगा। इसमें कहा गया है कि नए आपराधिक कानून “न्याय पर ध्यान केंद्रित करते हैं, सजा पर नहीं”।
छोटे अपराधों के लिए सामुदायिक दंड, नाबालिग के साथ सामूहिक बलात्कार के लिए मृत्युदंड / आजीवन कारावास, भारतीय न्याय संहिता में “महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध” पर नया अध्याय। इसके अलावा, इसमें कहा गया है कि प्रौद्योगिकी का उपयोग करके और दुनिया की सबसे आधुनिक न्याय प्रणाली बनाने के लिए, अदालत में पुलिस जांच से प्रक्रिया कम्प्यूटरीकृत होगी, बलात्कार पीड़िता के लिए ई-बयान, जीरो एफआईआर, ई-एफआईआर और चार्जशीट डिजिटल होगी।
फोरेंसिक को बढ़ावा देने के लिए, इसे 7 साल या उससे अधिक की सजा वाले सभी अपराधों में अनिवार्य कर दिया गया है, पहली बार 7 साल की कैद के प्रावधान के साथ भीड़ द्वारा हत्या को परिभाषित किया गया है, देशद्रोह को हटा दिया
कौन से है तीन नए कानून
नए आपराधिक कानून, भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) आज यानी 1 जुलाई 2024 से पूरे देश में लागू कर दिए गए है।
- भारतीय न्याय संहिता (BNS)
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)
औपनिवेशिक कानूनों का अंत
भारतीय कानूनी प्रणाली में अब औपनिवेशिक प्रभाव को भी खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है। आपको बता दें कि दशकों पुराने भारतीय दंड संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम और आपराधिक प्रक्रिया संहिता को अब आधुनिक बना दिया गया है।
ब्रिटिश शासन के दौरान लागू किए गए आईपीसी (1860) और साक्ष्य अधिनियम (1872) को भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है। वहीं 1973 की आपराधिक प्रक्रिया संहिता को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता द्वारा बदल दिया गया है।
New Criminal Laws नए आपराधिक कानून
नवाचारी कानूनी प्रक्रियाएँ (Innovative Legal Procedures): जैसे जीरो एफआईआर, जिसके द्वारा किसी भी पुलिस स्टेशन पर शिकायत दर्ज की जा सकती है साथ ही कानूनी कार्रवाई की शुरुआत को सरल बनाने का प्रयास किया गया है।
त्वरित न्यायिक प्रक्रियाएँ (Swift Judicial Processes): अदालती फैसले देने के लिए सख्त समय सीमाएँ, 45 दिनों के भीतर और आरोप लगाने के लिए 60 दिनों के भीतर समयबद्ध न्याय प्रदान किया जाए।
संरक्षण समर्थन (Protection for Vulnerable Groups): महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए विशेष प्रावधान, संवेदनशील संभालन और त्वरित चिकित्सा परीक्षण सुनिश्चित करने के लिए नियमों में बदलाव किया गया है।
तकनीकी प्रगति (Technological Advancements): ऑनलाइन पुलिस शिकायतें और इलेक्ट्रॉनिक समन सेवा, कागज़ाती कार्य को कम करने और संचार को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं।
रिमांड: नए कानूनों के तहत रिमांड का समय पहले की तरह 15 दिनों का ही रखा गया है।
भाषा: तीनों कानून देश की 8वीं अनुसूची की सभी भाषाओं में उपलब्ध होंगे और केस भी उन्हीं भाषाओं में चलेंगे।
फॉरेंसिक जांच: नए कानूनों में 7 साल या उससे अधिक की सज़ा वाले अपराधों में फॉरेंसिक जांच को अनिवार्य किया गया है, इससे न्याय जल्दी मिलेगा और दोष-सिद्धि दर को 90% तक ले जाने में सहायक होगा।
FIR: किसी भी मामले में FIR दर्ज होने से सुप्रीम कोर्ट तक 3 साल में न्याय मिल सकेगा।
मास्टर ट्रेनर्स: नए कानूनों पर लगभग 22.5 लाख पुलिसकर्मियों की ट्रेनिंग के लिए 12000 मास्टर ट्रेनर्स के लक्ष्य से कहीं अधिक 23 हजार से ज्यादा मास्टर ट्रेनर्स प्रशिक्षित।