डेली संवाद, नई दिल्ली। Stock Market Scam: सदी के महानायक अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) की ब्लॉकबस्टर मूवी ‘कालिया’ का एक डायलॉग है, ‘हम जहां खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है।’ अगर शेयर मार्केट की दुनिया में किसी को यह डायलॉग दोहराने का हक था, तो वो था केतन पारेख (Ketan Parekh)।
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केतन किसी जमाने में स्टॉक मार्केट (Stock Market) की दुनिया का बेताज बादशाह था। आपने मिडास की कहानी सुनी होगी। वो राजा, जो मिट्टी को भी छू लेता, तो वह सोना बन जाती। जब केतन का जलवा अपने शबाब पर था, उसे भी मिडास ही समझा जाता।
दो साल तक केतन की हर हरकत पर निवेशकों की नजर रही। वह जिस भी स्टॉक को खरीदता, वो रॉकेट बन जाता। जिसे बेचता, वो समंदर की गहराइयों तक गोता लगा जाता। उस दौर में ‘वन मैन आर्मी’ और पेंटाफोर बुल के नाम से मशहूर था केतन।
गाढ़ी कमाई एक झटके में लुट गई
अगर अफवाह भी उड़ जाती कि फलां शेयर केतन खरीद रहा है, तो वो भी रॉकेट बन जाता। लेकिन, जब केतन का स्कैम सामने आया, तो शेयर मार्केट की दुनिया हिल गई। लाखों निवेशक तबाह हो गए। उनकी खून-पसीने का गाढ़ी कमाई एक झटके में लुट गई।
कौन था केतन पारेख?
केतन पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट था और ब्रोकरेज फैमिली से आता था। उसने स्टॉक मार्केट की दुनिया के सबसे बदनाम शख्स, हर्षद मेहता के साथ भी शुरुआत में काम किया। केतन ने अपना असली खेला शुरू किया 1999-2000 के दौरान, डॉटकॉम बूम के साथ।
उस वक्त पूरी टेक्नोलॉजी का दौर रहा था। केतन ने भांप लिया कि आईटी सेक्टर (IT Sector) काफी तेजी से बढ़ने वाला है। उसने आईटी स्टॉक में पैसा लगाना शुरू कर दिया। लेकिन, उसने कम लिक्विडिटी और मार्केट कैप वाले शेयरों को चुना।
वह कंपनियों के प्रमोटरों के साथ सांठगांठ करके शेयरों की कीमत बढ़ा देता। इनमें आईटी, टेलीकॉम और एंटरटेनमेंट जैसे सेक्टर के शेयर शामिल थे। इनमें पैसे लगाने वाले लोगों को भी जमकर मुनाफा हुआ। निवेशकों के बीच केतन का दर्जा भगवान सरीखा हो गया।
हर्षद मेहता का चेला केतन
हर्षद मेहता (Harshad Mehta) पर बनी चर्चित वेब सीरीज ‘स्कैम 92’ में केतन का जिक्र नहीं है। लेकिन, केतन ने शेयर मार्केट की बारीकियां हर्षद से ही सीखीं, जिसने देश के सबसे बड़े शेयर मार्केट स्कैम को अंजाम दिया था। केतन ने अपने ‘गुरु’ हर्षद मेहता के पंप एंड डंप फॉर्मूले (Pump and Dump Formula) का बारीकी से अध्ययन किया और एक दशक बाद उसका इस्तेमाल कुछ बदलाव के साथ किया।
पंप एंड डंप स्टॉक मार्केट का ऐसा फर्जीवाड़ा है, जिसमें कोई बड़ा या प्रभावशाली निवेशक पहले बेदम कंपनियों के शेयरों के भाव को बढ़ाता है। जब भाव काफी ज्यादा बढ़ जाता है, तो वह शेयर बेचकर खुद निकल जाता है। वहीं, आम निवेशक अपना सारा पैसा लुटा बैठते हैं।
केतन 1990 के दशक की शुरुआत में हर्षद मेहता की कंपनी ग्रोमोर से जुड़ा। जब 1992 में हर्षद का भांडा फूटा, तो केतन बचकर निकलने में सफल रहा। 1992 के स्कैम में केतन का भूमिका का पता साल 2001 में चला। लेकिन, उस वक्त खुद केतन का स्कैम उजागर हो गया था।
केतन ने कैसे स्कैम किया?
केतन अपने कारोबार का संचालन कोलकाता स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से करता। वहां, मुंबई के मुकाबले कम कठोर नियम-कानून थे। केतन ने आईटी स्टॉक में निवेश किया, लेकिन वह विप्रो या इंफोसिस जैसी बड़ी कंपनियों के साथ नहीं गया। उसने शुरुआत की पेंटाफोर सॉफ्टवेयर के साथ।
पेंटाफोर चेन्नई की एक सॉफ्टवेयर कंपनी थी। वह भारी वित्तीय संकट से जूझ रही थी। लोन पर एक बार डिफॉल्ट भी कर चुकी थी। लिहाजा, उसके शेयर सस्ते में उपलब्ध थे। ऐसे में केतन ने प्रमोटरों के साथ मिलीभगत कर ली।
पेंटाफोर के प्रमोटरों ने अपने शेयर केतन को दे दिए और उसने इन्हें बेचना और अपने सहयोगियों के जरिए खरीदना भी शुरू किया। इस जालसाजी से पेंटाफोर की कीमतों में उछाल आ गया। इसे कहा गया पेंटाफोर फॉर्मूला और बाद में उसने दूसरी कंपनियों के साथ भी इसे आजमाया। केतन का नाम भी पेंटाफोर बुल पड़ गया।
के-10 के साथ धोखाधड़ी
केतन ने 10 कंपनियों के साथ पेंटाफोर फॉर्मूला अपनाया। इन्हें नाम दिया गया, के-10 यानी केतन-10। इनमें पेंटामीडिया ग्राफिक्स, एचएफसीएल, जीटीएल, सिल्वरलाइन टेक्नोलॉजीज, रैनबैक्सी, जी टेलीफिल्म्स, ग्लोबल ट्रस्ट बैंक, डीएसक्यू सॉफ्टवेयर, एफटेक इन्फोसिस और एसएसआई शामिल थीं।
उस वक्त पेंटाफोर सॉफ्टवेयर की कीमत 175 रुपये से बढ़कर 2,700 रुपये तक पहुंच गई। वहीं, ग्लोबल टेलीसिस्टम्स भाव 185 रुपये से उठकर 3,100 रुपये हो गई। विजुअलसॉफ्ट जैसे शेयर 625 रुपये से बढ़कर 8,448 रुपये और सोनाटा सॉफ्टवेयर 90 रुपये से 2,150 रुपये तक पहुंच गए और यह बात साल 2000 की है।
कब फूटा केतन का बुलबुला?
केंद्र सरकार ने 2001 में बजट पेश किया और अगले ही दिन शेयर मार्केट 176 अंक गिर गया, जो उस वक्त के हिसाब से काफी बड़ी गिरावट थी। ऐसे में फाइनेंशियल रेगुलेटर सेबी और आरबीआई ने मामले की जांच शुरू की। केतन पारेख पर बाजार में हेरफेर, सर्कुलर ट्रेडिंग, पंप और डंप और जालसाजी करके बैंक से कर्ज लेने का आरोपी पाया गया।
केतन के स्कैम की पूरी पोल उस वक्त खुली, जब बैंक ऑफ इंडिया ने आरोप लगाया कि केतन ने उनके साथ 137 करोड़ रुपये का फर्जीवाड़ा किया। इसके बाद स्टॉक मार्केट एकाएक क्रैश हो गया। जांच हुई, तो केतन पंप एंड डंप के साथ इनसाइडर ट्रेडिंग का भी दोषी मिला। उसने और भी कई रास्तों से आम निवेशकों के साथ बैंकों और सरकार को भी चून लगाया।
केतन शेयर का भाव बढ़ाने के बाद उसमें म्यूचुअल फंडों को भी निवेश करके फंसा लेता। उसने अपने फ्रॉड के लिए एक और रास्ता निकाला। उस वक्त भारत का मॉरीशस के साथ दोहरे कराधान से बचने का समझौता था, जिसे पिछले दिनों खत्म किया गया। इस नियम के मुताबिक, मॉरीशस स्थित फंडों को स्थानीय दरों पर कैपिटल गेन टैक्स चुकाना पड़ता था, भारत की दर पर नहीं। और मॉरीशस में स्टॉक गेन पर शून्य फीसदी टैक्स लगता था।
केतन ने इस लूपहोल का फायदा उठाने के लिए शेल कंपनियों को फंड का रूप दिया और फ्रॉड करने लगा। यह भारतीय मार्केट से पैसे निकालने और वापस लाने की निंजा टेक्निक थी, जिसे राउंड ट्रिपिंग कहा जाता। राउंड ट्रिपिंग में अमूमन कंपनियां अपने उस एसेट को बेचती हैं, जिनका वे इस्तेमाल नहीं कर रही होती। लेकिन, उसी वक्त वह दूसरी कंपनी से एसेट वापस खरीदने का भी समझौता कर लेती हैं। कमोबेश उसी प्राइस पर।
केतन ने कितने का स्कैम किया?
उन दिनों आरबीआई की गाइडलाइंस के मुताबिक, बैंक किसी स्टॉकब्रोकर को सिर्फ 15 करोड़ रुपये तक का कर्ज दे सकते थे। लेकिन, पारेख ने बैंक के अधिकारियों को घूस खिलाकर 800 करोड़ रुपये तक लोन लिया। केतन ने अनगिनत निवेशकों को भारी रिटर्न का सब्जबाग दिखाया। शुरुआत में उन्हें रिटर्न मिला भी। लेकिन, आखिर में जब केतन का बनाया रेतमहल ढहा, तो निवेशकों के लाखों-करोड़ों रुपये पलभर में खाक हो गए।
सीरियस फ्रॉड इनवेस्टिगेशन ऑफिसर (SFIO) की रिपोर्ट के मुताबिक, केतन पारेख ने करीब 40,000 करोड़ रुपये का स्कैम किया। सेबी ने पाया कि केतन शेयर बाजार में ट्रेडिंग करने शेल कंपनियों का इस्तेमाल कर रहा था। लिहाजा, करीब 26 संस्थाओं पर ट्रेडिंग बैन लगा दिया गया। केतन को भी 2017 तक ट्रेडिंग करने से रोक दिया गया था। उसे तीन साल की सजा भी हुई, लेकिन बाद में वह जमानत पर छूट गया।
केतन के घोटाले की वजह से साल 2012 में माधवपुरा मर्केंटाइल कोऑपरेटिव बैंक दिवालिया हो गया। बैंक पारेख और अन्य कर्जदारों से बकाया नहीं वसूल पाया। इससे बैंक के करीब 13 हजार खातेदार प्रभावित हुए थे। केतन ने इस बैंक से 12 हजार करोड़ रुपये का कर्ज लिया था। यह रकम ब्याज मिलाकर 21 हजार करोड़ रुपये से अधिक हो गई थी। पारेख ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया, जिससे बैंक के पैसे डूब गए।