डेली संवाद, नई दिल्ली। Seasonal affective disorder: इन दिनों कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याएं लोगों को अपना शिकार बना रही है। बदलती जीवनशैली का असर लोगों की मेंटल और फिजिकल हेल्थ पर भी देखने को मिल रहा है।
हम सभी ने अक्सर यह सुना होगा कि कई परेशानियों और प्रेशर की वजह से लोग तनाव और डिप्रेशन का शिकार होते हैं, लेकिन क्या आपने सभी यह सुना कि मौसम की वजह से भी लोगों को डिप्रेशन हो सकता है। अगर आप भी यह सुनकर चौंक गए हैं, तो आपको बता दें कि यह पूरी तरह सच है।
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दरअसल, डिप्रेशन के कई सारे कारकों में मौसम में एक अहम कारक है। मौसम की वजह से होने वाले इस विकार को सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (Seasonal Affective Disorder-SAD) कहा जाता है।
इसे विंटर डिप्रेशन के नाम से भी जाना जाता है। अगर आप भी इन दिनों अपने व्यवहार और मानसिक स्वास्थ्य में कुछ बदलाव देख रहे हैं, तो हो सकता है कि आप सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर का शिकार हो रहे हैं। आइए जानते हैं इस डिसऑर्डर के बारे में सबकुछ-
क्या है सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर?
मायो क्लीनिक के मुताबिक सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (एसएडी) एक प्रकार का डिप्रेशन है, जो मौसम में बदलाव से जुड़ा हुआ है। एसएडी हर साल लगभग एक ही समय पर शुरू और समाप्त होता है। ज्यादातर लोगों में इसके लक्षण पतझड़ में शुरू होते हैं और सर्दियों के महीनों तक जारी रहते हैं, जिससे आपकी एनर्जी कम हो जाती है और आपको मूड स्विंग्स महसूस होने लगते हैं।
एसएडी के लक्षण क्या हैं?
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के मुताबिक एसएडी को एक अलग विकार नहीं है, बल्कि यह एक डिप्रेशन का ही एक प्रकार है, जो मौसम में बदलाव की वजह से लोगों में देखने को मिलता है और हर साल लगभग 4 से 5 महीने तक रहता है। इसलिए एसएडी के लक्षण काफी हद तक गंभीर डिप्रेशन के लक्षण से मिलते-जुलते होते हैं, हालांकि सर्दी और गर्मी के लक्षण लोगों में अलग-अलग नजर आ सकते हैं। गंभीर डिप्रेशन के लक्षणों में निम्न शामिल हैं-
- एनर्जी कम होना
- सुस्ती महसूस होना
- सोने में दिक्कत होना
- भूख या वजन में बदलाव का होना
- बार-बार आत्महत्या के विचार आना
- अक्सर पूरे दिन उदास महसूस करना
- निराशाजनक या बेकार महसूस करना
- उन गतिविधियों में रुचि खोना, जो आपको पसंद है
शीतकालीन-पैटर्न एसएडी के लक्षण
- अधिक सोना (हाइपरसोमनिया)
- अधिक खाना, विशेषकर कार्बोहाइड्रेट की क्रेविंग के साथ
- वजन बढ़ना
- लोगों से अलग-थलग रहना
- ग्रीष्म-पैटर्न एसएडी के लक्षण
- सोने में परेशानी (अनिद्रा)
- भूख कम लगना, जिससे वजन कम होने लगता है
- बेचैनी और व्याकुलता
- चिंता
- आक्रामक व्यवहार
एसएडी के रिस्क फैक्टर
सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर के मामले पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक देखने को मिलते हैं। साथ ही वह वृद्धों की तुलना में युवाओं में ज्यादा बार होता है। इसके जोखिम को बढ़ाने वाले कारकों में निम्न शामिल हैं:-
पारिवारिक इतिहास- जिन लोगों के परिवार में डिप्रेशन या किसी अन्य प्रकार का अवसाद होने की संभावना अधिक हो सकती है।
गंभीर डिप्रेशन या बायपोलर डिसऑर्डर होना- अगर आप इनमें से किसी भी एक स्थिति का शिकार है, तो डिप्रेशन के लक्षण मौसम के अनुसार खराब हो सकते हैं।
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इक्वेटर से दूर रहना- यह डिसऑर्डर उन लोगों में ज्यादा आम है, जो भूमध्य रेखा यानी इक्वेटर से दूर उत्तर या दक्षिण में रहते हैं। ऐसा सर्दियों के दौरान सूरज की रोशनी में कमी और गर्मियों के महीनों के दौरान लंबे दिनों के कारण हो सकता है।
विटामिन डी की कमी- सूर्य की रोशनी के संपर्क में आने से शरीर में विटामिन डी की पूर्ति होती है। विटामिन डी सेरोटोनिन गतिविधि को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है। ऐसे में कम धूप या फूड आइटम्स आदि से पर्याप्त विटामिन डी नहीं मिलने से शरीर में विटामिन डी का स्तर कम हो सकता है, जिससे इसके लक्षण खराब हो सकते हैं।
एसएडी से बचाव
सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर यानी एसएडी को रोकने का कोई तरीका नहीं है। हालांकि, कुछ तरीकों की मदद से इसके लक्षणों को गंभीर होने से पहले ही रोका जा सकता है। इन तरीकों में निम्न शामिल हैं-
- लाइट थैरेपी
- साइकोथैरेपी
- एंटीडिप्रेसेंट मेडिकेशन्स
- विटामिन डी