डेली संवाद, कपूरथला
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन मौके पुष्पा गुजराल साइंस सिटी में वेबिनार का आयोजन किया गया। जिसमें विभिन्न स्कूलों से 100 विद्यार्थियों व अध्यापकों ने वर्चुअल द्वारा भाग लिया। आपदा प्रबंधन दिवस का इस बार का थीम “विकासशील देशों के आपदा खतरों और नुक्सान को कम करने राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग है’।
इस मौके भारत सरकार के गृह मंत्रालय राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अथार्टी नई दिल्ली के संयुक्त सचिव कुनाल सतिआर्थी आईएफएस मुख्य प्रवक्ता के तौर पर उपस्थित हुए। वेबिनार दौरान उन्होंने विचार पेश करते हुए कहा कि कुदरती और मानव द्वारा पैदा की गई आपदें हर हजारों लोगों को प्रभावित करती है और यह मानसिक व शरीरिक स्तर पर लोगों को तबाह कर सकते है।
भूचाल, तूफान व बाढ़ आम किस्म की कुदरती आपदें है
उन्होंने कहा कि भूचाल, तूफान व बाढ़ आम किस्म की कुदरती आपदें है। इसके अलावा जंगलों की आग, सूखा, भू-खिस्कने और बादलों के फटने जैसी क्रोपी भी है। दूसरे तरफ मानव द्वारा पैदा की आपदों में आग, उद्योगिक हादसे, गोलीबारी, आतंकवाद और सार्वजनिक हिंसाओं आदि शामिल है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सहयोग के लिए विकासशील देशों को अधिकारित तौर पर सहायता और समर्था में वृद्धि करना बहुत जरुरी है। क्योंकि इसके साथ ही कुदरती और मानव द्वारा पैदा की जा रही आपदों का सामना करने के योगय भाव समर्थ बनाया जा सकता है।
इस संबंधी विशेष लैक्चर, सेमिनार और बच्चों व नौजवानों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम करवाने अति जरुरी है। वेबिनार में शामिल बच्चों व अध्यापको का स्वागत करते साइंस सिटी की डायरेक्टर जनरल डा. नीलिमा जेरथ ने प्राकृतिक आपदों के खतरों को कम करने के लिए राष्ट्रीय सभ्याचार को उत्साहित करने की आशा के साथ हर वर्ष 13 अक्तूबर को राष्ट्रीय स्तर आपदा प्रबंधन दिवस मनाया जाता है। इस दिन की शुरुआत 1989 में की गई थी।
जानी व माली नुक्सान से लोगों का बचाव किया जा सके
उन्होंने कहा कि समाज में गरीब, भूखमरी और आपदा के खतरों को कम करने के लिए इस ओर राष्ट्रीय स्तर पर निवेश बढ़ाने के लिए विशेष कदम उठाए जाने चाहिए। इसके अलावा ऐसे हालात में सरकार द्वारा मुहैया सुविधाओं को यकीनी बनाने के साथ-साथ आपदों के कारणों बारे विज्ञानिक जागरुकता पैदा की जानी चाहिए ताकि जानी व माली नुक्सान से लोगों का बचाव किया जा सके।
इस मौके साइंस सिटी के डायरैक्टर डा. राजेश ग्रोवर ने बच्चों का आभार व्यक्त करते कहा कि कुदरती हल जैसे जंगलों और झीलों की सांभ-संभाल के साथ सूखे जैसी आपदों के खतरों को कम करके लोगों को इनसे निपटने के समर्थ बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसी घटना से गैर जलवायु संबंधी आपदों जैसे भूचालों के साथ भू-खिसकने के खतरों को भी कम किया जा सकता है।
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