चंडीगढ़। पंजाब विधानसभा में पेश कई गई भारत के लेखा निरीक्षक व महालेखा परीक्षक (कैग) की 2018-19 में सामने आया है कि पंजाब में विकास कार्यों पर ब्रेक लग चुका है। राज्य सरकार राजकोषीय जिम्मेदारियों के निर्वहन और चौथे वित्त कमीशन द्वारा सुझाए बजट प्रबंधन अधिनियम 2003 को अपनाने में असफल रही है।
राज्य सरकार के 33 पीएसयूज में से 27 पीएसयूज के 16 खातों ने घाटा दिखाया, जबकि चार नो लॉस नो प्राफिट की स्थिति में हैं। फंड का इस्तेमाल करने में कई सरकारी विभागों ने लापरवाही दिखाई, जिसमें कई विभागों ने अपना फंड वित्त वर्ष के अंतिम महीने में ही खर्च किया और सालभर पैसा दबाए रखा।
[ads1]
कैग की रिपोर्ट में पंजाब भले ही राजकोषीय सुधार के पथ पर है, लेकिन यह एक राजस्व घाटे वाला राज्य बन गया है। 2017-18 के दौरान, राजस्व घाटे में पिछले वर्ष की तुलना में 29 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2013-14 से 2017-18 की अवधि में राजस्व प्राप्ति और पूंजी प्राप्तियां क्रमश: 35104 करोड़ और 11221 करोड़ से बढ़कर 53010 करोड़ और 18590 करोड़ हो गई।
पूंजीगत व्यय राज्य के बजट में किए गए कम
इस तरह, 2013-18 में, राजस्व प्राप्तियां 10.62 प्रतिशत की वार्षिक औसत विकास दर से बढ़ीं हैं। हालांकि इस रफ्तार से राजस्व व्यय भी बढ़ा है। पिछले वर्ष की तुलना में चालू वर्ष के दौरान राजस्व व्यय में 7169 करोड़ (12.96 प्रतिशत) की वृद्धि हुई है, लेकिन पूंजीगत व्यय से सरकार ने हाथ खींचा है। पिछले वर्ष की तुलना में 2017-18 के दौरान पूंजीगत व्यय 1994 करोड़ (45.88 प्रतिशत) घटा। इसका सीधा अर्थ है कि राज्य सरकार ने अपने बजट अनुमानों के अनुसार परिसंपत्ति निर्माण को उतनी प्राथमिकता नहीं दी।
चालू वर्ष के दौरान पूंजीगत व्यय राज्य के बजट में किए गए अनुमानों की तुलना में 3805 करोड़ कम रहा। इसी तरह, सामाजिक क्षेत्र पर राज्य के खर्च में कुल व्यय का अनुपात 2013-14 में 27.83 प्रतिशत से घटकर 2017-18 में 24.99 प्रतिशत हो गया। पिछले वर्ष की तुलना में चालू वर्ष के दौरान ऋण और अग्रिम के संवितरण में 40604 करोड़ (98.16 प्रतिशत) की कमी आई है।
जेलों में सुधार की गुंजाइश की जरूरत
कैग ने पंजाब की जेलों में सुरक्षा व्यवस्था में सुधार की काफी गुंजाइश बताई है। रिपोर्ट के अनुसार, 2018 तक तीन वर्षों के दौरान सूबे की जेल से कुल 31 कैदी भागे, क्योंकि अधिकांश जेलों में आधुनिक सुरक्षा उपकरणों के अलावा 30 से 45 प्रतिशत तक स्टाफ की कमी रही। इसके अलावा नौ सेंट्रल और एक अधिकतम सुरक्षा वाली जेल सहित सभी 26 जेलों में धन के इस्तेमाल में भी गड़बड़ी हुई।
कैग का कहना है कि जेलों के आधुनिकीकरण के लिए जारी राशि में से 31 से 100 फीसदी 2015 और 2018 के बीच इस्तेमाल ही नहीं हुई। एक सरकारी रिपोर्ट का हवाला देते हुए, कैग ने कहा है कि नाभा जेल ब्रेक ने 3जी से 4जी तकनीक, एक्स-रे बैगेज-चेकिंग मशीनों की स्थापना और सीसीटीवी और मेटल डिटेक्टर आदि जैसे अन्य सुरक्षा उपकरणों के जेल जैमरों के उन्नयन पर जोर दिया।
[ads2]
जेलों फ्लैश या सर्च लाइट भी नहीं
लेकिन 26 जेलों में से 2जी या 3जी मोबाइल जैमर अक्टूबर, 2012 से दिसंबर, 2016 के बीच केवल चार जेलों में लगाए गए। सात जेलों में, डोर-फ्रेम मेटल डिटेक्टर, हैंड-हेल्ड मेटल डिटेक्टर और सीसीटीवी फरवरी, 2018 तक काम नहीं कर रहे थे। नौ परीक्षण-जांच वाली जेलों में आधुनिक सुरक्षा उपकरण जैसे दूरबीन, श्वास विश्लेषक (अल्कोमीटर) और फ्लैश या सर्च लाइट भी नहीं थीं।
परियोजनाएं हैं अधूरी
वर्ष 2008-09 और 2017-18 के बीच पूरा करने के लिए निर्धारित 40 परियोजनाएं अधूरी रहीं। इन पर किए गए 771.52 करोड़ के खर्च का अभी तक कोई लाभ नहीं मिल सका है। 9 बड़ी सिंचाई परियोजनाओं के कारण राज्य सरकार को 2017-18 के दौरान 351.64 करोड़ का विशुद्ध नुकसान उठाना पड़ा। राज्य सरकार ने 31 मार्च 2018 को राज्य आपदा कोष के तहत 5382.21 करोड़ की राशि का निवेश नहीं किया है। भवन और अन्य निर्माण कामगार कल्याण उपकर के तहत 833.13 करोड़ की राशि 31 मार्च 2018 तक बेकार पड़ी रही।
खजाने में नकद शेष भी घटा
वर्ष 2017-18 की समाप्ति पर सरकार के पास 488.45 करोड़ का नकद शेष था, जो निर्धारित आरक्षित निधि 5519 करोड़ की तुलना में बहुत कम रहा। इससे यही संकेत मिले कि सरकार ने आरक्षित निधि का उपयोग इच्छित उद्देश्य के अलावा कई अन्य मदों में किया। हालांकि इन मदों का कोई जिक्र अपनी रिपोर्ट में नहीं है।
[ads1]
पीएसपीसीएल बचा सकता था 961 करोड़ रुपये
कैग ने पीएसपीसीएल की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनी उपभोक्ताओं से 2.59 करोड़ रुपये के बिजली के बकाया बिलों की वसूली नहीं कर सकी। इसके अलावा, कंपनी ने गैर धुले कोयले की ढुलाई पर 961.71 करोड़ रुपये खर्च कर दिए, जोकि बचाए जा सकते थे। कंपनी के पास योग्य मैनपावर नहीं होने के कारण ट्रांसमिशन लाइनों के रखरखाव नहीं हुआ और इस पर खर्च किए 1.24 करोड़ रुपये व्यर्थ चले गए। (साथ में amarujala से साभार)