नई दिल्ली। यह कोई आम डायरी नहीं है. उर्दू और अंग्रेजी में लिखी गई इस डायरी के पन्ने अब पुराने हो चले हैं लेकिन इसमें दर्ज एक-एक शब्द सरफ़रोशी की समां जला देते हैं. हम बात कर रहे हैं शहीद-ए-आजम भगत सिंह के उस ऐतिहासिक दस्तावेज का जिसे उन्होंने अपने आखिरी दिनों में लाहौर (अब पाकिस्तान) जेल में लिखी थी।
आज इस महान आजादी के दीवाने का जन्मदिन है. सिर्फ 23 साल की उम्र में शहादत को प्राप्त करने वाले भगत सिंह पढ़ने-लिखने में काफी रुचि लेते थे. इसीलिए वो जेल में रहते हुए भी अपने विचार लिखना चाहते थे. जेल प्रशासन ने 12 सितंबर, 1929 को उन्हें डायरी प्रदान की. जिसमें उन्होंने अपने विचार लिखे. इस पर जेलर और भगत सिंह के हस्ताक्षर हैं. इसका एक-एक पन्ना उनके पूरे व्यक्तित्व को समझने के लिए काफी है।
भगत सिंह लिखते हैं
‘महान लोग इसलिए महान हैं क्योंकि हम घुटनों पर हैं. आइए, हम उठें!’ इसके पेज नंबर 177 पर वह लिखते हैं “यह प्राकृतिक नियम के विरुद्ध है कि कुछ मुट्ठी भर लोगों के पास सभी चीजें इफरात में हों और जन साधारण के पास जीवन के लिए जरूरी चीजें भी न हों.” इसके 41वें पेज पर धर्म के बारे में उन्होंने अपने विचार जाहिर किए हैं।
‘लोग धर्म द्वारा उत्पन्न झूठी खुशी से छुटकारा पाए बिना सच्ची खुशी हासिल नहीं कर सकते. यह मांग कि लोगों को इस भ्रम से मुक्त हो जाना चाहिए, उसका मतलब यह मांग है कि ऐसी स्थिति को त्याग देना चाहिए जिसमें भ्रम की जरूरत होती है।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह की आवाज, उनके क्रांतिकारी विचार आम लोगों तक पहुंचाने के लिए पहली बार उनकी जेल डायरी हिंदी में छपवाई गई है. खास बात यह है कि इसमें एक तरफ भगत सिंह की लिखी डायरी के पन्नों की स्कैन प्रति लगाई गई है और दूसरी तरफ उसका ट्रांसलेशन (अनुवाद) है. शहीद-ए-आजम ने अंग्रेजी और उर्दू में डायरी लिखी है. इस पर लाहौर जेल के जेलर के भी हस्ताक्षर हैं. डायरी पर ‘नोटबुक’ भारती भवन बुक सेलर लाहौर छपा हुआ है।
हिंदी पट्टी के लोग उनके विचार उन्हीं के शब्दों में जान सकें
शहीद-ए-आजम के वंशज यादवेंद्र सिंह संधू दिल्ली से सटे हरियाणा के फरीदाबाद में रहते हैं. उन्होंने भगत सिंह द्वारा लाहौर सेंट्रल जेल में लिखी गई डायरी की मूल प्रति संजोकर रखी हुई है. संधू कहते हैं, ‘हम चाहते थे कि डायरी में लिखी बातों का हिंदी में अनुवाद कर आम लोगों तक पहुचायां जाए. खासकर हिंदी पट्टी के लोग उनके विचार उन्हीं के शब्दों में जान सकें।
संधू कहते हैं, ‘भगतसिंह के बारे में हम जब भी पढ़ते हैं, तो एक प्रश्न हमेशा मन में उठता है कि जो कुछ भी उन्होंने किया, उसकी प्रेरणा, हिम्मत और ताकत उन्हें कहां से मिली? उनकी उम्र मात्र 23 साल थी और उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया. लाहौर सेंट्रल जेल में आखिरी बार कैदी रहने के दौरान (1929-1931 के बीच) भगत सिंह ने आजादी, इंसाफ़, खुद्दारी, मजदूरों, क्रांति और समाज के बारे में महान दार्शनिकों, विचारकों, लेखकों और नेताओं के विचारों को खूब पढ़ा और आत्मसात् किया. इसी आधार पर उन्होंने जेल डायरी में कमेंट्स लिखे।
‘यह सब आप उन्हीं के शब्दों में, उन्हीं की हैंडराइटिंग में पढ़ सकते हैं. भगत सिंह ने सब भारतीयों को यह बताने के लिए लिखा कि आजादी क्या है, मुक्ति क्या है और इन अनमोल चीजों को बेरहम और बेदर्द अंग्रेजों से कैसे छीना जा सकता है, जिन्होंने भारतवासियों को बदहाल और मजलूम बना दिया था. भगत सिंह ने किस तरह के भविष्य का सपना देखा था? मौजूदा हालात में भगत सिंह की जेल डायरी इन सवालों का जवाब दे सकती हैं।’
404 पेज की इस डायरी के हर पन्ने पर वतनपरस्ती झलकती है
404 पेज की इस डायरी के हर पन्ने पर वतनपरस्ती झलकती है. आजाद भारत के सपने को लेकर भगत सिंह ने लाहौर जेल में जो कठिन दिन गुजारे उसका हर लम्हा इसमें कैद है। इसके पेज नंबर 124 पर उन्होंने Aim of life शीर्षक से लिखा है, ‘ज़िंदगी का मकसद अब मन पर काबू करना नहीं बल्कि इसका समरसता पूर्ण विकास है।
मौत के बाद मुक्ति पाना नहीं बल्कि दुनिया में जो है उसका सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना है. सत्य, सुंदर और शिव की खोज ध्यान से नहीं बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी के वास्तविक अनुभवों से करना भी है. सामाजिक प्रगति सिर्फ कुछ लोगों की नेकी से नहीं, बल्कि अधिक लोगों के नेक बनने से होगी. आध्यात्मिक लोकतंत्र अथवा सार्वभौम भाईचारा तभी संभव है जब सामाजिक, राजनीतिक और औद्योगिक जीवन में अवसरों की समानता हो।
पूंजीवाद और साम्राज्यवाद को बताया है खतरा
27 सितंबर, 1907 को लाहौर में जन्मे भगत सिंह ने अपनी डायरी में पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के खतरे भी बताए हैं. डायरी के पन्ने उनकी साहित्यिक रुचि का भी बयान करते हैं. जिसमें उन्होंने स्वच्छंदवाद के हिमायती मशहूर अमेरिकी कवि जेम्स रसेल लावेल की आजादी के बारे में लिखी गई कविता ‘फ्रीडमʼ लिखी है. इसके अलावा शिक्षा नीति, जनसंख्या, बाल मजदूरी और सांप्रदायिकता आदि विषयों को भी छुआ है।
जो गम की घड़ी भी खुशी से गुजार दे… –
इसमें एक जगह वो लिखते हैं कि दिल दे तो इस मिजाज का परवरदिगार दे, जो गम की घड़ी भी खुशी से गुजार दे… उनके प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू सवाल करते हैं कि इन लाइनों को लिखने वाला भला नास्तिक कैसे हो सकता है? शहीद-ए-आजम भगत सिंह के चाहने वाले करोड़ों में हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि भगत सिंह किस क्रांतिकारी के प्रशंसक थे? भगत सिंह स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त के प्रशंसक थे. इसका एक सबूत उनकी जेल डायरी में है. उन्होंने बटुकेश्वर दत्त का एक ऑटोग्राफ लिया था।
बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह लाहौर सेंट्रल जेल में कैद थे. बटुकेश्वर के लाहौर जेल से दूसरी जगह शिफ्ट होने के चार दिन पहले भगत सिंह उनसे जेल के सेल नंबर 137 में मिलने गए थे. यह तारीख थी 12 जुलाई, 1930. इसी दिन उन्होंने अपनी डायरी के पेज नंबर 65 और 67 पर उनका ऑटोग्राफ लिया।
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