डेली संवाद, जालंधर। Jalandhar News: जालंधर में नगर निगम का चुनाव देर से होगा। क्योंकि अभी न तो सरकार चुनाव करवाने की स्थिति में दिख रही है और न ही विपक्ष तैयार दिख रहा है। जिससे निगम चुनाव में देरी हो सकती है। इसके साथ ही कांग्रेस ने प्रस्तावित वार्डबंदी के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी है। जिससे जानकार बताते हैं कि चुनाव अभी तीन महीने आगे जाएगा।
उधर, बात अगर म्युनिसिपल एक्ट की करें तो निगम हाउस के खत्म होने के 6 माह के भीतर नए हाउस यानि चुनाव होने चाहिए। लेकिन सरकार 6 माह के भीतर चुनाव करवाने में असफल रही है। कायदे से जून से पहले निगम चुनाव होने चाहिए। क्योंकि 24 जनवरी को निगम हाउस खत्म हो गया है। अब बारिश और बाढ़ के बाद सरकार इस पर गौर करेगी।
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दूसरी बात यह है कि नगर निगम के अधिकारी चुनाव प्रक्रिया में देरी की वजह बन रहे हैं। वार्डबंदी आने के बाद जब लोगों ने एतराज जताना शुरू किया तो नगर निगम के कमिश्नर छुट्टी पर चले गए। एक सप्ताह के बाद जब वे छुट्टी से लौटे तो निगम मुलाजिम हड़ताल पर चले गए। अब जब वे हड़ताल से वापस आए हैं तो बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई है।
स्थिति यह है कि लोगों द्वारा वार्डबंंदी पर जताए गए एतराज को ही अभी तक नगर निगम के अधिकारी अपने स्तर से दूर हीं नहीं किया है। जिससे अभी तक वार्डबंदी ही फाइनल नहीं हो सकी है। फिलहाल इस पूरे मामले में नया ट्विस्ट उस वक्त आ गया, जब कांग्रेस ने इस के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लगाई।
जून 2023 से पहले होना था चुनाव
जालंधर नगर निगम का पार्षद हाऊस 24 जनवरी 2023 को खत्म हो गया। नियमानुसार 6 माह के भीतर नए पार्षद हाऊस के लिए चुनाव करवाना चाहिए। बावजूद सत्ताधारी आम आदमी पार्टी सूबे के पांच नगर निगमों में अभी तक चुनाव नहीं करवा सकी। म्युनिसिपल एक्ट के मुताबिक 6 माह के अंदर चुनाव होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
कांग्रेस ने लगाई याचिका
कांग्रेस पार्टी ने जालंधर निगम की प्रस्तावित वार्डबंदी को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दे दी है। जिला कांग्रेस के प्रधान तथा पूर्व विधायक राजेंद्र बेरी, पूर्व कांग्रेसी पार्षद जगदीश दकोहा तथा पूर्व विधायक प्यारा राम धन्नोवाली के पौत्र अमन ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई है। इस याचिका को हाईकोर्ट के वकील एडवोकेट मेहताब सिंह खैहरा, हरिंदर पाल सिंह ईशर तथा एडवोकेट परमिंदर सिंह विग पैरवी कर रहे हैं।
याचिका में यह दिया गया तर्क
कांग्रेस द्वारा हाईकोर्ट में लगाई गई याचिका में तर्क दिया गया है कि पंजाब सरकार ने जब डीलिमिटेशन बोर्ड का गठन किया था, उसके सदस्यों को बदला नहीं जा सकता परंतु बोर्ड के सदस्य जगदीश दकोहा तथा अन्य पार्षदों को इस आधार पर हटा दिया गया क्योंकि जालंधर निगम के पार्षद हाऊस की अवधि खत्म होने के बाद वह पार्षद नहीं रह गए थे।
याचिका में कहा गया है कि 5 एसोसिएट सदस्यों को न तो डिलीमिटेशन बोर्ड की बैठक में बुलाया गया और न ही उन्हें बोर्ड से हटाने हेतु कोई नोटिफिकेशन ही जारी किया गया। सरकार ने अपनी ओर से दो सदस्य बोर्ड में मनोनीत कर दिए जबकि सरकार केवल एक ही सदस्य बोर्ड में अपनी ओर से भेज सकती है।
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याचिका में कहा गया है कि जब डीलिमिटेशन बोर्ड ही अवैध है तो उस द्वारा तैयार की गई वार्डबंदी अपने आप ही गैरकानूनी हो जाती है। याचिका में तर्क दिया गया है कि प्रस्तावित वार्डबंदी में गूगल मैप को आधार बनाया गया है जो आम आदमी की समझ से परे है। इसकी बजाए ड्राफ्ट्समैन से वार्डों की सीमाओं का निर्धारण किया जाना चाहिए था परंतु राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते वार्डबंदी का प्रस्तावित ड्राफ्ट तैयार किया गया।