डेली संवाद, अमृतसर (रमेश शुक्ला ‘सफर’)। Udham Singh: अब तक किताबों में यही पढ़ाया जाता रहा है कि शहीद ऊधम सिंह (Udham Singh) ने जनरल डायर को गोली मारी थी लेकिन यह गलत है। हकीकत यह है कि उन्होंने जनरल औ डायर को गोली मारी थी। जबकि जनरल डायर तड़प -तड़प कर गंभीर बीमारी की मौत मरा था।
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शहीद ऊधम सिंह का अमृतसर (Amritsar) से गहरा नाता रहा है। अमृतसर के सैंट्रल यतीम खाना में शहीद ऊधम सिंह ने कई साल गुजारे और जलियांवाला बाग नरसंहार के दौरान उन्होंने अपनी आंखों से मंजर देखा तो मिट्टी हाथ में लेकर उन्होंने बदला लेने की कसम खाई थी। 1933 में लंदन पहुंच कर उन्होंने जनरल औ डायर के घर पर नौकरी की।

जनरल औ डायर को गोली मार दी
बात करें 13 मार्च 1940 के दिन की तो शेर की तरह (बचपन का नाम शेर सिंह) ने ललकारते हुए काक्सटन हॉल में चल रही बैठक में उन्होंने जनरल औ डायर को गोली मार दी थी। गोली मारने के बाद वो भाग नहीं और गिरफ्तारी दे दी। 4 जून 1940 को हत्या का दोषी माना गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें फांसी दे दी गई।

शहीद ऊधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को संगरूर जिले के सुनाम में कंबोज परिवार में हुआ था। शहीद ऊधम सिंह के परिवार से ताल्लुक रखने वाले हरदयाल सिंह कंबोज कहते हैं कि भारत सरकार को कई बार चिट्ठी लिखी कि देश को आजादी दिलाने वालों को शहीद का दर्जा मिले लेकिन अब तक कागजों में शहीद का दर्जा नहीं मिला है। अब दोबारा वो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी लिखेंगे।

शहीद का दर्जा अब तक नहीं मिला
हरदयाल सिंह कंबोज ने 13 जुलाई 1974 की वो फोटो शेयर करते बताया कि जब अंग्रेजों ने ऊधम सिंह की चचेरी बहन आस कौर को उनकी अस्थियां दी थी उस समय तत्कालीन पंजाब के मुख्य़मंत्री ज्ञानी जैल सिंह घर आए थे और आस कौर को उन्होंने सरकारी पैंशन के दस्तावेज दिए थे। लेकिन शहीद का दर्जा अब तक नहीं मिला।