डेली संवाद। रमेश शुक्ला ‘सफर’। Lok Sabha Election: देश में 2024 लोकसभा चुनावों को लेकर सभी की नजरें 4 जून पर टिकी है। भले ही चुनाव ईवीएम (EVM) से हो रहा है लेकिन हाईटेक जमाने की बात करें तो अभी भी स्याही लगी उंगली लोकतंत्र की खूबसूरत पहचान बन चुकी है। उंगली में लगाई जाने वाली स्याही का अपना गौरवशाली इतिहास है।
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आइए जानते हैं कि आखिर उंगली में लगाए जाने वाली यह स्याही कहां बनती है और कहां -कहां इसकी सप्लाई की जा रही है। हालांकि 2024 में इस स्याही की 26 लाख शीशियों की स्याही के निशान से इस बार प्रधानमंत्री चुना जाना है।
विशेष स्याही बनाने का गौरव हासिल
सबसे पहले आपको बता दें कि 1937 में महाराजा कृष्णराज वाडियार ने मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड की स्थापना की थी। जिसे बाद में एकमात्र विशेष स्याही बनाने का गौरव हासिल किया। इसे भारतीय राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला के सहयोग से चलाया जा रहा है।
1962 में पहली बार स्याही का हुआ प्रयोग
इस कंपनी की स्याही भले ही दुनिया के 60 देशों में निर्यात की जा रही है लेकिन पहली बार देश में 1962 के चुनाव में स्याही का प्रयोग किया गया। 10 मिलीलीटर स्याही की इस शीशी में सिल्वर नाइट्रेट के साथ-साथ ऐसे केमिकल हैं जो उंगली पर कई दिनों तक मिटती नहीं।
1 शीशी की कीमत है 174 रुपये
प्रत्येक शीशी की कीमत 174 रुपये हैं। पिछले चुनावों में इसकी कीमत 160 रुपये थी। 1 लीटर स्याही की कीमत 12 हजार 700 रुपये है, एक बूंद की कीमत 12 रुपये 70 पैसे है। 1 शीशी से करीब 700 लोगों की उंगलियों पर निशान लगाया जा सकता है। एक बूथ पर करीब 1200 मतदाता का औसत है।
स्याही ऐसी जो रोकती है फर्जी मतदान
यह स्याही चुनाव अधिकारी बाएं हाथ की तर्जनी की उंगली में लगाता है, सिल्वर नाइट्रेट हमारे शरीर में मौजूद नमक के साथ मिलकर सिल्वर क्लोराइड बनाता है, जो कि पानी में घुलता नहीं। यह 40 सेकंड में सूख जाता हैं।
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बैंगनी रंग की इस स्याही को 72 घंटे के पहले किसी भी प्रकार के साबुन, केमिकल से साफ करना नामुमकिन माना जाता है, भले ही साइंस ने बहुत तरक्की कर ली हो। लेकिन यह स्याही समय से पहले छुड़ाई नहीं जा सकती।